झील के किनारे गूँजती हुई वायलीन की उदास धुन हवा में धीमे-धीमे घुल रही है, परंपरा है कि हवा को अभी जाना होगा लेकिन झील को तो वहीं रहना हैं, ये बिछोह तो उसे सहना ही होगा और ये दर्द जैसे केवल हवा और झील का ही नहीं बल्कि उसके किनारे बैठे जोड़े का भी है। वर और वधू दोनों उसके किनारे बैठे हुए हैं और फिर लड़का बहुत हल्के संगीत के साथ धीमे से अपनी बात कह देता है, 'बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदिया, ये रैना.... ' लड़की धीमे से पूछती है, 'और ....?' जब वो बोलती है तो पूरा संगीत थम जाता है, उसकी आवाज ही इतनी मधुर है कि उसके सामने संगीत का मौन रह जाना ही ठीक है; स्वर यदि पुरुष के पास हैं उन्हें सँवारने वाला संगीत स्वयं स्त्री है - और अब वही संगीत दूर जा रहा है ....