आज जब चीजों की उम्र दिनों और हफ्तों में में नापी जाने लगी है तब ये सोचकर हैरानी होती है कि कभी 3310 जैसा एक फोन भी हुआ करता था, जो अमरौती खाकर जन्मा था; वो यूं ही भूकंप के बाद ढही इमारतों के मलबे से हफ्तों बाद भी हँसते-मुसकुराते बाहर निकल आता, पानी में गिर जाये तो धूप में सूखते ही फिर गाने लगता, ट्रक के नीचे आ जाये तो फूँक मारते ही उठ खड़ा होता।
बनाने वालों ने उसमें बैटरी की बजाय एक ठौ परमाणु बिजली घर फिट किया था - तब दोपहर बारह बजे सोकर उठते ही एक-एक कर अपनी तमाम चांदो को फोन लगाना शुरू करो और रात को उगते चाँद की रोशनी में बैटरी पर नज़र डालो - तो वो वैसे ही टनाटन फुल; ज़िंदगी में रौनक उसी के कारण थी। चांद एक-एक कर बदलती रही, लेकिन वो वहीं का वहीं बना रहा - उसके बरोब्बर चल सके, इतना माद्दा किसी में था ही नहीं।
मजबूत इस दर्जे का कि फेंक के मारो तो अगले की मुंडी में सुराख बना दे, और जो थोड़ा ज़ोर और लगा दो तो अगले की संक्रांत निपोर दे - ये वो जमाना था जब रात-बेरात 3310 जेब में पटककर लोग-बाग बदनाम इलाकों में दनदनाते हुए टहला करते, अगर कोई लुटेरा-चोट्टा कमाई के इरादे से रामपुरी थामे सामने आने की ज़ुर्रत भी करता तो बस उसे इतना कहना पड़ता -'बेट्टा जेब में 3310 धरा है, बोले तो बाहर निकालूँ'।
खौफ इस कदर था साहब, कि गुंडे-बदमाश इसका नाम सुनते ही हरबा-हथियार छोड़ भाग खड़े होते और रात के खाने के बाद अपनी जुगाड़ के घर तक घूमने निकले विरहीजन, सड़कों पर बिखरा असलहा समेट घर उठा लाते और अगले सुबह कबाड़ी वाले को बेचकर चार पैसे खड़े कर लेते - दीदारे-यार भी हो जाता और अगले दिन उन्हें पानी-पूड़ी खिलाने का इंतजाम भी। उचक्कों के पेट पर इतनी जबर लात किसी और ने ना मारी थी जितनी इसने!
वो था ही किसी स्विस आर्मी नाइफ जैसा, पत्नियों का तो स्वर्ण युग ही उसकी बदौलत आया था, उसने उन्हें वो मददगार दिया जिससे वो सारी उम्मीदें छोड़ चुकी थी - पति।
पत्नियाँ ज्यादा कुछ नहीं करती, बस यदि उन्हें दीवार में कील घुसेड़नी होती, तो पति के सिर की तरफ साभिप्राय देखते हुए, 3310 से कील की खोपड़ी को दो बार दचक देती - लोहा भीतर,सीमेंट बाहर; हाल ये हो गए थे कि पतियों को काम बताने की जरूरत ही खत्म हो गई, वो खुद ब खुद सुबह साड़े चार बजे उठ कर काम में जुट जाते और देर रात गए तक पिले रहते, इसका फायदा भी मिला - पतियों की सेहतें रेंबो को मात करने वाली हो गई थी, और पत्नियों की सेहते .... खैर जाने दो, 3310 खुद पर चलवाने का खतरा कौन उठाये?
ये तथ्य तो सभी जानते हैं कि म्यूटेंट्स ने उसे किसी अनजानी एलियन टेक्नोलॉजी से बनाया था इसलिए उसे दोहराने से कोई लाभ नहीं है, बहरहाल सुनते हैं कि जब इंसानियत बूढ़ी हो जायेगी अपना तैतीस-दस तब भी जवान रहेगा; हो सकता है लाखो साल बाद जब फिर कोई सभ्यता इस धरती पर अपनी आंखे खोले तो ज़मीन की गहराइयों से अपनी उसी चिर -परिचित रिंगटोन के साथ अपना 3310 यूं ही मुस्कुराता हुआ बाहर निकल आए।
अपना ये दूज का चाँद, सन दो हजार में सितंबर के दूसरे दिन जन्मा था - गजब फोन था; शुभकामनायें तो बनती हैं।
- अनिमेष

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