दौड़ कर पंगत में जगह घेर ली है, सांस ज़ोरों की चल रही हो लेकिन खुशी है कि पहला संघर्ष कामयाब रहा; दो साल तक किताबों के पीछे भागने के बाद आखिरकार ठीक-ठाक कॉलेज मिल गया है, खर्चे को लेकर सांस थोड़ी ऊपर नीचे हो गई थी लेकिन खुशी है कि पहली लड़ाई जीत ली।
नमक तो सभी की पत्तल पर रखा जा चुका है अब बस बाकी का इंतज़ार है, तभी हल्की सी हवा चली तो पत्तल उड़ने को बेसब्र हो उठी, जैसे-तैसे उस पर खाली कुल्हड़ धरकर उड़ने से बचाया; पढ़ाई तो खैर सभी की शुरू हो गई है, लेकिन अब बाकी सपनों का इंतज़ार है, इस बीच प्यार का एक छोटा सा झोंका क्या आया कि ज़िंदगी जीने को बेसब्र हो उठी, जैसे-तैसे खाली जेब का बोझ उस पर रखकर बहकने से बचाया।
अब नजरें सभी की पत्तलों को जांच रही है, बैठे एक साथ थे लेकिन कुछ को दूसरों से बेहतर मिली है - किस्मत की बात है; अब नज़रें सभी की नौकरियों को परख रही है, पढ़े तो सब संग-साथ थे लेकिन किसी की जुगाड़ बढ़िया थी और किसी के रिश्ते - किस्मत की बात है। दोना भी थोड़ा हल्का सा दिख रहा है, पता नहीं रायते को थाम पाएगा या पत्तल में पसर जाएगा; पगार भी थोड़ी कम ही है, पता नहीं जिम्मेदारियों को अपने कंधे पर उठा पाएगी या यूं ही पसर जाएगी?
परोस दूसरे कोने से हो रही है, सो पूड़ियाँ पहुँचने के पहले ही बार-बार खत्म हो रही हैं, सब्जी मिलाकर देने को कहा तो वो सिर हिला कर बढ़ गया, रायते में मिरचा इतना था कि पूरा मुंह धधक गया, उंगली के इशारे से दो गुलाब जामुन मांगे थे लेकिन अगला उसे हंसी में उड़ा गया, थोड़ी सी चाशनी एक कोने में गिरा गया; पानी की बाल्टी, रेशम की बाड़ी में बरस रही है और यहाँ चातक की प्यास एक-एक बूंद को तरस रही है।
पूड़ियों के इंतज़ार में दूसरों को खाते देखना भा रहा है, जहां हर कोई खुद में ही धंसा जा रहा है; किसी ने दो तो किसी ने तीन पत्तल पकड़ रखी है, लेकिन नजरें उनकी अभी भी भूखों सी टहल रही है .... तीखेपन को दबाने अपनी पत्तल के कोने में कुछ बूंदी बचा रखी थी, कमाई मेहनत की थी लेकिन काले धन सी छिपा रखी थी; तभी हवा का झोंका आया और पत्तल पलटा कर चला गया, क्या लाये थे क्या ले जाओगे का संदेश सुना कर चला गया...
पंगत पूरे उफान पर है उसके मजे उठा रहे हैं, खाली पेट आए थे और संतोषी बन कर जा रहे हैं।
(जीवन की सारी भाग-दौड़ और द्वंद्व, अपनी एक 'पंगत' के अनुभव में समाहित हैं।)
- अनिमेष

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