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The Diving Bell and the Butterfly: A Story of Unwavering Will

 सात मार्च १९९७ को एक पुस्तक प्रकाशित हुई; पहले ही दिन उसकी पच्चीस हजार प्रतियाँ बिक गई, सप्ताह भर में डेढ़ लाख और उसके बाद ये सिलसिला थमा ही नहीं - मूल पुस्तक फ्रांसीसी में थी, आने वाले समय में उसका अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ और दसियों लाख प्रतियों की बिक्री के साथ वो पूरे यूरोप में बेस्ट सेलर बनी।

किताब के अँग्रेजी संस्करण का नाम था - 'द डाइविंग बेल एंड द बटरफ्लाई'। लेखक थे ज्यां डोमिनिक, एक पत्रकार और 'एल' (ELLE) पत्रिका के संपादक। पुस्तक छपने के दो दिन बाद ही न्यूमोनिया से उनकी मृत्यु हो गई - किताब कितनी सफल रही ये वो कभी नहीं जान पाये।
लेकिन अपनी जिस सफलता के बारे में वो जानते थे, वो पुस्तक की सफलता से बहुत ज्यादा बड़ी थी।

प्रकाशन के सवा साल पहले, एक दिन वो अपने बेटे के साथ कार से घूमने निकले, तभी बीच में उन्हें लगा कि सभी आकार दोहरे दिखाई दे रहें हैं; अस्पताल पहुँचने तक वो कोमा मे जा चुके थे। 


एक जबर्दस्त ब्रेन-स्ट्रोक ने उनके मस्तिष्क और मेरुदंड के बीच के संबंध को क्षतिग्रस्त कर दिया, बीस दिन बाद जब वो कोमा से बाहर निकले तो मालूम पड़ा कि उनका पूरा शरीर पक्षाघात का शिकार हो चुका था - बाईं आँख को छोड़कर; वो अपनी बाईं आँख की पलक को अपनी मर्जी से झपक सकते थे।

दुर्घटना से पहले उन्होने अन्य किसी विषय पर एक किताब लिखने का करार किया था , और वो पूरी किताब उन्होने इसी तरह लिखी - अपनी बाईं आँख को झपकाकर।

उन्होने पूरी किताब को अपने मन में जमाया और फिर उसे 'लिखवाया'; उनकी सहयोगी उनके सामने बैठकर एक-एक कर अक्षर बोलते चलती और जैसे ही सही अक्षर आता वो अपनी पलक झपक देते और इस तरह लगभग दो मिनट में एक शब्द तैयार हो जाता। दस महीने तक लगातार, हर दिन चार घंटे वो ऐसे शब्द के बाद शब्द लिखवाते चले गए।
किताब में 32,500 से ज्यादा शब्द हैं।

उन्होने केवल एक किताब नहीं लिखी, बल्कि एक संदेश दिया; उन्होने बता दिया कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही प्रतिकूल हों, मनुष्य की दृढ़ इच्छा शक्ति उन पर विजय पा ही सकती है; कुछ सफलताएँ केवल मनुष्य नहीं बल्कि मानवता (mankind) की संघर्षशक्ति की पहचान बन जाती है - ये उनमें से एक है।

- अनिमेष

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