इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा ♫♪ ...
गाना सीधा-साधा है, सुनो तो लगता है कि जैसे साहिबज़ान (मीना कुमारी) आरोप लगा रही है कि इन्हीं लोगों ने मेरा दुपट्टा लिया है; शायद बाहर तार पर सूखने के लिए डाला था और इन्हीं में से कोई एक उसे ले गया। लेकिन फिर ध्यान आता है कि वो कह रही है - ले लिया ना कि चुरा लिया; तो क्या ये काम साधिकार किया गया है? क्या उस दुपट्टे के मालिकाना हक को लेकर कोई मसला था? क्या ये एक आरोप ना होकर एक सूचना है?
गाना सीधा-साधा है, सुनो तो लगता है कि जैसे साहिबज़ान (मीना कुमारी) आरोप लगा रही है कि इन्हीं लोगों ने मेरा दुपट्टा लिया है; शायद बाहर तार पर सूखने के लिए डाला था और इन्हीं में से कोई एक उसे ले गया। लेकिन फिर ध्यान आता है कि वो कह रही है - ले लिया ना कि चुरा लिया; तो क्या ये काम साधिकार किया गया है? क्या उस दुपट्टे के मालिकाना हक को लेकर कोई मसला था? क्या ये एक आरोप ना होकर एक सूचना है?
इस अकेली मासूम सी पंक्ति में अब कई परतें नजर आ रही है, और शायद ऐसा ही है भी।
किसी कपड़े का दुपट्टा हो जाना, एक दुर्लभ और सम्माननीय यात्रा है, वो सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता और साहिबज़ान उसके कोमल और नाजुक पहलू से हटकर केवल व्यावसायिक पक्ष की बात कर रही है। वो जानती है कि अगर वो ऐसा नहीं करेगी तो मामला जज़्बाती हो जाएगा और फिर तलवारे निकलते देर नहीं लगेगी - वो अभी तलवारों की धार नहीं देखना चाहती, सो एक नए आग्रह के साथ आगे बढ़ती है कि -
'हमरी न मानो सैंया तो बजजवा से पूछो जिसने, जिसने अशरफ़ी गज़ दीना दुपट्टा मेरा ♫♪ ...'
वो बजाज उर्फ कपड़े के व्यापारी के बहाने पूरी व्यावसायिक कम्यूनिटी पर एक दबी चोट मार रही है, कि इन्हीं लोगों ने इतना महंगा कपड़ा दिया था - एक अशर्फी प्रति गज!
बताइये?
कोई ऐसे ठगता है कहीं? तिस पर साहिबजान की सेहत बता रही है कि तीन गज से कम में उसका काम नहीं चलेगा, मतलब तीन अशर्फ़ियाँ बाहर तार पर लटकी थी और अब लगता है कि कुछ संदेहास्पद हाथों से होता हुआ कपड़ा फिर दुकान पर लौट चुका है।
बताइये?
कोई ऐसे ठगता है कहीं? तिस पर साहिबजान की सेहत बता रही है कि तीन गज से कम में उसका काम नहीं चलेगा, मतलब तीन अशर्फ़ियाँ बाहर तार पर लटकी थी और अब लगता है कि कुछ संदेहास्पद हाथों से होता हुआ कपड़ा फिर दुकान पर लौट चुका है।
लेकिन वो शक जता रही और शक तो कई लोगों पर किया जा सकता है, सो उसका अगला निशाना कामगार वर्ग है - हमरी न मानो तो रँगरजवा से पूछो जिसने गुलाबी रँग दीना दुपट्टा मेरा।
ये एक नयी जानकारी है, अर्थात वो सफ़ेद रंग का कपड़ा लायी थी और उसे रंगवाया गया था - अब शक की सुई रंगरेज की तरफ घूम चुकी है क्योंकि बजाज को तो सफ़ेद दुपट्टे का ही पता था, गुलाबी का नहीं; तो अब यकीनी तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है।
लेकिन एक मिनट ... यहाँ मामला थोड़ा गिचपिच हो गया और जितना दिख रहा है उससे कहीं ज्यादा उलझा हुआ है। ओढ़नी पर जरी गोटेपट्टी का काम भी किया हुआ है, और लप्पा नहीं कि तार उठा के घर में पिरो लिया बल्कि मोठड़ा - महंगा और आला दर्जे का ... बाकी दुपट्टे को छुआ तक नहीं गया है - उसे कोरा ही रखा गया है, तो सवाल उठता है क्यों?
और यहाँ कलाकार की सोच की तारीफ करनी पड़ेगी - उसने अपने काम की जगह छोड़ी ताकि लोचदार बाहों की पूरी आस्तीन पर की गयी सुंदर कढ़ाई झीने रेशमी पर्दे से नजर आ सके ... और इसी बात को ध्यान में रखते हुए साहिबज़ान अपने आरोपों में उसका नाम तक नहीं लेती, उसे छिपा ले जाती है - साफ है कि कलाकार के दिल में, कारीगरों के लिए मुलायम गोशा है, उसकी ड्योढ़ी पर उसने कितनी अशर्फ़ियाँ खर्ची, वो इसका जिक्र कतई ना करेगी।
लेकिन यदि दुपट्टा एक है तो लेने वाला भी एक ही होगा, तो इतने लोगों पर उंगलिया क्यों? दरअसल वो साहस बटोर रही है और कुछ-कुछ अंदेशा हो रहा है कि वो जानती है असबाब किधर गया, लेकिन शायद किसी डर ने उसकी ज़बान पकड़ रखी है और वो मुद्दे की बजाय दुनिया-जहान का जिक्र छेड़े पड़ी है।
अब वो मुद्दे पर आती है और सीधे-सीधे, आँखों में आँख और कानों में कान डाल कर कहती है - हमरी न मानो सिपहिया से पूछो, जिसने बजरिया में छीना दुपट्टा मेरा ♫♪ ....
छीना!
आह! यहाँ एकदम से शब्द बदल दिया जज़्बात बदल दिये; तो वारदात को बजरिया थाना क्षेत्र में अंजाम दिया गया था और घटना में खाकी शामिल थी।
तभी!
सही भी है, पहले ही अंदाजा हो जाना चाहिए था - इज्जत को उछालने, छीनने और तबाह करने के पवित्र काम के लिए लिए तो कानून के लंबे हाथों का इस्तेमाल बहुत पुराने जमाने से हो रहा, अगर वो ये काम नहीं करेगा तो कौन करेगा?
घुंघरुओं की आवाज़ गूंज रही है, अंदाजा तो हो रहा है कि किसके पैरों में बंधे है और अशर्फ़ियों की खनक पर कौन नाच रहा है लेकिन कहना सही नहीं होगा ...
- अनिमेष

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