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Carving Eternity: The Ancient Carnelian Bull


The Bull of Haryana - A Riddle in Stone

A Masterpiece from the Age of the Ancients

 कलाकृति छोटी सी है, इतनी छोटी कि उसे सुविधापूर्वक अपनी हथेली पर रख, आँखों के करीब लाकर उसका आराम से निरीक्षण किया जा सकता है, और जैसे ही ऐसा करते हैं, उसकी कला के विस्तार का अंदाजा लगना शुरू होता है जो उसके बाद हर पल बस बढ़ता ही जाता है।

जिस भी कलाकार ने इसे बनाया होगा उसने पहले पत्थर का अच्छे से परखा होगा, उसमें बनी हुई हर लहर को देखकर उसकी भूमिका तय की होगी और फिर ही उसे तराशने का काम शुरू किया होगा।

लघुमूर्ति की हर रेखा प्रवाहमयी लगती है लेकिन साथ ही वो बैल के आकार को स्पष्ट भी करती चलती है। 

कूबड़ और पीठ का गहरा भूरा रंग अगर कहीं और होता तो संभवतः प्रवाह में खटकता, लेकिन यहाँ तो वो उसे पूरी दृढ़ता के साथ परिभाषित कर रहा है और बैल के चेहरे के साथ साम्ञ्जस्य स्थापित कर रहा है।
Ancient Indian Agate Bull Sculpture

कूबड़ के आगे से शुरू होकर पीछे दुम की ओर जाती सफ़ेद, धूसर पट्टियाँ उसके लटकते गलकंबल का भ्रम पैदा करती है और पूरे आकार को कोमलता से उभारते हुए पीछे को चली जाती है। 


बैलों को अपनी संस्कृति में आदिकाल से ही उर्वरता, शक्ति और समृद्धि से जोड़कर देखा जाता रहा है और संभवतः इसी बात को रेखांकित करते हुए, गौरव के साथ खड़े इस शक्तिशाली बैल के सिर पर बने सुंदर घुमावदार सींगों को सोने के महीन पत्तर से सजाया गया है।


स्थिर भाव से खड़ा हुआ एक शक्तिशाली बैल, जिसमें आगे से लेकर पीछे तक ऊर्जा प्रवाहित होते हुए दिख रही है, जो अपने स्वर्णमंडित सींगों के साथ इस विश्व को जैसे चिरकाल से देख रहा है ...

चिरकाल ... और यही सत्य है!


बैल की ये कृति कम से कम 3800 साल पुरानी है, जिसे हरियाणा के भिवानी जिले के पुर नामक गाँव में पाया गया था; लेकिन आश्चर्य यहीं समाप्त नहीं होता - ये हकीक (अकीक) से बनी है जो कठोरता के पैमाने पर तांबा, पीतल, लोहा इन सबसे ऊपर है; कठोर कीमती पत्थरों में उससे ऊपर फिर पुखराज और हीरा आते हैं। लेकिन कठोरता के बावजूद हकीक पर काम करना इसलिए मुश्किल हो जाता है क्योंकि इसकी संरचना इसे भंगुर बना देती है - औज़ार की एक गलत चोट और पूरी कलाकृति के चटकने का खतरा।


तो उन महान, अनाम कलाकार ने इसे बनाया कैसे होगा - हीरे और पुखराज की तो छैनियां होती नहीं है तो संभवतः नरम धातुओं से बने औजारों का ही उपयोग करना पड़ा होगा और,'रसरी आवत-जात ते सिल पर पड़त निशान...' के सिद्धान्त पर चलते हुए धीरे-धीरे आकार निकाला होगा या फिर कोई और तकनीक काम में लाई गई होगी?

कुछ भी कहना मुश्किल है - वैसे भी जब शक्ति और ऊर्जा के मेल को इतने मोहक लालित्य के साथ प्रस्तुत किया गया हो तो शब्द मौन हो ही जाते है।

- अनिमेष

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