भिंडी के पास रूप है, बैंगन के पास रंग और गोभी के पास जटिलता है, लेकिन कद्दू? उसके के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जो पहली नज़र के प्यार को मजबूर कर दे - मामूली सा रंग, बेढब सा आकार और उस पर उबाऊपन की हद तक सादगी। खरीदने भी जाओ तो बोदे को थैले में सबसे नीचे रखना पड़ता है कि कहीं मुलायम टमाटर का वक्त से पहले कीमा ना बना दे।
लेकिन जैसा की नीतिज्ञों ने कहा है कि सज्जन पुरुष नारियल के समान होते हैं, ऊपर से कठोर और भीतर से मुलायम - अपना कद्दू भी वही सज्जन पुरुष है; एक बार आप उसका बख्तरबंद हटा दो तो उससे नरम कोई सब्जी नहीं। पंगत में बैठ के, पूरियों के साथ, दस दोने भी खाली कर दो तो मजाल है कि जबान पर एक खरोंच तक पड़ जाये; स्वाद ऐसा कि चार सब्जियों का मजा एक साथ, सुपाच्य इस कदर कि पानी से पहले पच जाये .... और कभी मजबूती नाप लो भाई की - कच्चे अचार की बर्नी के बाजू में पटक कर भूल जाओ, अचार गल जायेगा पर ये नहीं।
ये उन सब्जियों में से नहीं कि जिनका फ्रिज के नखरे के बिना गुजारा ना हो।
ना।
गागर में सागर समेटे चुपचाप पड़ा रहेगा, जब कटेगा तो सब में बंटेगा; मंडी से बोरा भर उठा लाओ और झोंक के मिरचा, पंगत पे पंगत निपटाओ, पतीला खाली हो जाये तो कहना - सब्जियों का कामधेनु है अगला। बीज सुखा के फांक लो तो बादाम इसके सामने फ़ेल है; इसके कज़िन से दोस्ती कर लो तो पेठे का खेल है।
कहने को सब्जी है - वरना अपने आप में पूरी फौज है; चाय के साथ यदि चटपटे का मन हो तो कद्दू के पकौड़े और कद्दू की चटनी; खाने में यदि सब्जी से हट के कुछ दिल हो तो पत्नी संग कोफ्ते बना लो, खट्टे में कद्दू का रायता हो जाएगा और मीठे में कद्दू का हलवा और उसी की खीर- प्यार भी बढ़ेगा और स्वाद भी। आप कहाँ लगे हो साहब, दुस्साहसी तो इसका जूस पीकर सिरके में घुला अचार भी बना ले जाते हैं और इसी की पूड़ी और पराठे टिफिन में रखकर पार्क में मजे से खाते हैं।
कद्दू को बस एक बार प्रेम से पढ़ने की ज़रूरत है, ढाई अक्षरों में खुद को समेटे ये जगत की क्षुधापूर्ति के लिए स्वयं को हर तरह से न्योछावर कर देगा।
संभवतः इसीलिए ये अपने देश की राष्ट्रीय सब्जी भी है।
- अनिमेष अनंत
(फ़ेसबुक की पूर्व-प्रकाशित पोस्ट; अड्रेस कमेन्ट सेक्शन में)
मूल फ़ेसबुक पोस्ट - https://www.facebook.com/animesh.ashtami/posts/pfbid0RH1UMtArme2QFr9izhEEkhaAK8DAPnETxyUGwux3AKgbb5K9P9ixg7Bs8TLZXZsLl
ReplyDelete