अगर कायदा यही है कि काटों भरे रास्ते पर चलकर ही ताजों को पाया जायेगा, तो विजेताओं की उस कतार में भी सबसे पहला नाम यूफोर्बिया का ही आयेगा; कंटीले बख्तरबंद को पहन, चुपचाप अपने संघर्षों से जूझता एक योद्धा, उसने खुद को स्त्रियोचित ख़ुशबुओं से नहीं सजाया, ना ... उस जैसे कठोर योद्धा पर तो उग्रता ही सजती है, प्रचंड उग्रता। उसने कोमल रंगों को अपना संगी नहीं बनाया, ना ... उस जैसा शूर तो बस वीरता के ही एक रंग में सजीला लगता है।
उसने दुनिया को अपनी आंखो से बदलते देखा है, जब डायनोसार धरती पर टहल थे ये तब भी वहाँ था, और जब वो खत्म हुए
ये तब भी पनप रहा था - जिसने अपनी जड़ों से खौलते लावा को तब अमृत समझ कर पीया हो, उसे भला सुगंध और कोमलता कहाँ रास आयेगी, वो तो चिर वैरागी है.....
लेकिन विजेताओं के सिरों पर तो मुकुट शोभते हैं, संभवतः यही विचार कर प्रकृति ने मरकत की आग पर मूँगे को पिघला कर खुद अपने हाथों से उसके लिए मुकुट बनाया, जिसे घने आसमान ने अपने खजाने के अनमोल हीरों से सुबह-सुबह ही सजा दिया ....
(चित्र - गमले में खिले कुछ निस्पृह यूफोर्बिया। पोस्ट फ़ेसबुक पर पूर्व प्रकाशित। लिंक कमेन्ट सेक्शन में)
- अनिमेष
फ़ेसबुक पोस्ट लिंक https://www.facebook.com/photo.php?fbid=3631673400493923
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