Skip to main content

We The Bachelors

ये जो तुम महापुरुषों को किताबों में, तस्वीरों में, किस्से कहानियों मे तलाशते घूमते हो ना, गलत करते हो। यदि चुनौतियों से भिड़ जाने वाले, तूफानों से अड़ जाने वाले, पहाड़ों पर चढ़ जाने वाले लोग देखना है तो गौर से अपने आस पास देखो। वो यहीं हैं। दुनिया ने उन्हे कई नाम दिये -
बैचलर, अविवाहित, कुँवारा, कमीना और भी ना जाने क्या क्या। पर वास्तव में वो हैं- उफनते समंदरों में अपनी कश्ती डाल देने वाले दिलेर बंदे! अपनी ही पहचान से अनजान आम लिबास में घूमते सुपर हीरो! खुद को दहका कर इस अंधेरी दुनिया को रोशन करते धूमकेतु!
आज की तारीख़ में बैचलर होना आसान नहीं है साहब, ये एक शक्कियों से भरी गली है और दामन बचाकर जाना है। आज एक बैचलर ज़ोर से हंस नहीं सकता कि लोग क्या सोचेंगे, मनचाहा गीत नहीं गुनगुना सकता कि लोग उसमें मायने ढूँढने लगेंगे, सितारों मे अपनी किस्मत नहीं तलाश सकता कि लोग उसे चाँद को ताकने का मुजरिम ठहरायेंगे। वो बेक़सूर होकर भी हमेशा से ही कठघरे में खड़ा सवालों के जवाब दे रहा है। 
वो शक्की निगाहों और फुसफुसाहटों की दुनिया में रहता है पर फिर भी अपनी ज़िंदगी को पूरी शिद्दत से जीता है।  उसने जीना सीख लिया है।
 
वो गरजते बादलों के साथ हँसता है, कड़कती बिजलियों से सुर मिलाता है और दहकते सूरज की आंखों में आंखे डाल कर देखता है। पर उसका असली इम्तिहान तब होता है जब वो उन अपनों की महफिल में शामिल होता है जो एक बैचलर की शानदार ज़िंदगी को छोड़ शादी कर चुके होते है।
आखिरकार शादी आपको केरेक्टर ना दे पर  केरेक्टर सर्टिफिकेट तो दे ही देती है, वो जवाब ना देपर दूसरों से सवाल करने का हक दे देती है। जब से मूँगफली ने दाम में बदाम को टक्कर देना शुरू किया है, शादीशुदा लोगों ने भी वक़्त क़तल करने को अपने इस हक का पूरा उपयोग करना सीख लिया है।

अभी कुछ दिनों पहले कई सालो बाद कुछ पुराने दोस्तों से एक रैस्टौरेंट में मिलना हुआ। सर्द मौसम
मे पुराने यादों की गर्माहट घुली हुयी थी। पर एक बैचलर जानता है कि ये सब दिखावा है, हमला कभी भी और कहीं से भी शुरू हो सकता है और ये यार दोस्त ही आपको शरशैय्या पर लिटाने में वक़्त नहीं लगाएंगे। तजुरबा बताता है कि ऐसे मामलों में पहला तीर शादी की शक्ल में ही आता है कि 'यार क्यों नहीं की?'

अब हम भी कभी 'नर्म पत्तों की शाख़ हुआ करते थे पर छिले इतने गए कि खंजर बन गए।' सो जब सब आराम से बतियाने लगे, उनकी पत्नियाँ भी आपस में बातों मे मशगूल हो गयी, तब मौका देख पहला गोला हमने ही दाग दिया-
"यार तुमने शादी क्यों की?" मारा एक को था लेकिन निशाने पर सब थे।
"क्य... क्यों की मतलब? यार ये क्या बात हुई??" कोर्स के बाहर के सवाल को लेकर दोस्त ने अपनी आपति दर्ज कराने की कोशिश की ...  "सब करते है इसलिए की।"
"अपनी बात कर यार, ऐसे तो पाकिस्तानी चार चार करते हैं तो वहीं अमेरिकियों को लिव-इन वाला पैकेज मुफ़ीद पड़ता हैं। गोरे तो हर तीसरे महीने तलाक़ लेते रहते हैं, तो क्या उनके पीछे चल पड़े?' हम ने भी तथ्यों के बजाए धारणा का प्यादा आगे बढ़ा दिया।
 
अब जब 'तलाक़', 'लिव-इन', 'चार शादियाँ' जैसे शब्द हवाओं में गूँजे तो सारी क्रूज़ मिसाइले जो तब तक बातों मे उलझी हुयी ही चुप हो इधर ही देखने लगी। एकाध ने पूछ भी लिया "ये किसके तलाक की बातें हो रही है भैया?"
"किसी के भी नहीं भाभी, बस ऐसे ही आजकल के हालात पर बातें चल रही हैं।" मालूम था अब ये आडियन्स इधर के सिवा और कहीं नहीं जाएंगी। अब अगली चाल का वक्त था -
"चल यार तुम लोगों ने शादी क्योंकी ये नहीं मालूम तो कम से कम ये तो बता दो शादी होती क्या है?"
कुछ दोस्तों ने सोचने वाला चेहरा बनाया, एकाध मोबाईल चेक करने के बहाने दूसरी तरफ देखने लगा। आखिर एक ने बोल ही दिया" सब जानते हैं यार Marriage is an institution ...विवाह एक संस्था है,... वगैरा वगैरा।"

"यार स्कूल में इस वाले निबंध का तो सभी ने रट्टा मारा था, पर उस संस्था को खड़े करने के लिए तुमने क्या किया? सारा काम तो भाभियों ने किया। वो अपना घर छोड़कर आई कि एक मकान को घर बना सके, उस घर से पतझड़ को विदा कर बसंत की खुशबू ला सके, सन्नाटे की चुप्पी को तोड़कर जीवन का संगीत गुंजा सके। सारा त्याग, सारा बलिदान तो उनका है, तुम्हारा क्या है?" बीच में पीछे से एकाध भिंची-भिंची सी आवाज़ तो आई थी कि 'चुप हो जा कमीने', पर हमसे बारूद लगाने का काम बीच में ना रोका गया। शुभ कार्य को मझधार में नहीं छोड़ा करते, ये अपना उसूल रहा है।
 
"यार ऐसा नहीं है कि सब इन्होंने ही किया है, दिन-दिन भर ऑफिस में खटते हैं तो कोई अपने लिए क्या? सब इनके लिए।" एक ने अपना पैर कुल्हाड़ी पर मारते हुये कहा। उसकी वाइफ़ ने अब जो जहर बुझी निगाहों से उसे देखा तो, दो चार पति वैसे ही दहल गये।
खैर तब तक वैटर ऑर्डर लेने आ गया तो घरों में टाइम बम लगाने का एक मौका और मिल गया।

सबसे पहले अपन ने ऑर्डर दे दिया- "...दही, मूंग की सादी दाल, और बिना घी लगी रोटियाँ! दलिया मिलेगा? नहीं ... चलो कोई बात नहीं।" साथ में खाने को लेकर पूरा दर्शन भी बघारा  जिस में 'फाइब्रस फूड', 'बैड कोलेस्टरोल', 'low-cal डाइट', 'अब उम्र के साथ ख्याल तो रखना ही पड़ेगा', 'योगा' जैसे शब्दो की छोंक साथ में और लगा दी।
जिसे भाभियों ने पूरे ध्यान से सुना।
जाहिर है अपन ने तो एक दिन भुगता पर अपने यार एक महीने से घर पर यही खाना भुगत रहे हैं।
कहते हैं कि "जब तक शेरो के अपने इतिहासकार नहीं होंगे, तब तक शिकारी ही महिमामंडित होंगे।"
तो अब बैचलर शेरों के कलम उठाने का वक्त आ गया है, और ध्यान रहे अब ये दास्तानें खंजर से लिखी जायेंगी और इस बहरी दुनिया को सुनाई जायेंगी।

'सब कुछ करने का पर एक बैचलर को हर्ट नहीं करने का।'

Comments

Popular posts from this blog

Pumpkin - The Unlikely Hero of the Kitchen

  भिंडी के पास रूप है, बैंगन के पास रंग और गोभी के पास जटिलता है, लेकिन कद्दू? उसके के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जो पहली नज़र के प्यार को मजबूर कर दे - मामूली सा रंग, बेढब सा आकार और उस पर उबाऊपन की हद तक सादगी। खरीदने भी जाओ तो बोदे को थैले में सबसे नीचे रखना पड़ता है कि कहीं मुलायम टमाटर का वक्त से पहले कीमा ना बना दे। फ्रिज में घुसता नहीं है, आसानी से कटता नहीं; चमड़ी कुछ इस कदर मोटी कि कहीं नाजुक कलाइयों में मोच ना आ जाये, सो व्यवस्था देनी पड़ी - इसे महिलाएं नहीं काटेंगी, केवल पुरुष काटेंगे - चौके में रहकर भी जिसके ऐसे बगावती तेवर हो उसे अब क्या ही कहा जाये?

A Love Story Sent to the Stars The Voyager's Journey of Science and Love

 प्यार में गहरी डूब चुकी 27 साल की एक युवती के दिमाग की गहराइयों में क्या चल रहा होगा, ये जानने की उत्सुकता शायद किसी को भी हो सकती है। कार्ल ने बस दो दिन पहले ही एन के सामने शादी का प्रस्ताव रखा था, दोनों की दोस्ती को कुछ बरस हो चुके थे, फिर एक प्रोजेक्ट पर साथ काम करते करते एक दिन कार्ल ने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे एन ने दिल की गहराइयों से मान भी लिया। दो दिन बाद प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में एन का EEG लिया गया, रिकॉर्डिंग लगभग एक घंटा चली। उस दौरान चेतन रूप में तो एन प्रकृति, दर्शन, संस्कृति, इतिहास जैसी बातों पर विचार करती रही पर अवचेतन में उसका दिमाग अभी भी उल्लास, उमंग और उत्साह वाली उसी अवस्था में था जो शायद किसी भी इंसान की ज़िंदगी में केवल एक ही बार आती है और ईईजी ने उसे पकड़ने में कोई गलती नहीं की। पूरी रिकॉर्डिंग को एक मिनट में 'कंप्रेस' कर, सोने का परत चढ़ी तांबे की एक डिस्क - गोल्डन रिकॉर्ड, में लिख दिया गया। 

Euphorbia - When Thorns Bloom Into a Crown

अगर कायदा यही है कि काटों भरे रास्ते पर चलकर ही ताजों को पाया जायेगा, तो विजेताओं की उस कतार में भी सबसे पहला नाम यूफोर्बिया का ही आयेगा; कंटीले बख्तरबंद को पहन, चुपचाप अपने संघर्षों से जूझता एक योद्धा, उसने खुद को स्त्रियोचित ख़ुशबुओं से नहीं सजाया, ना ... उस जैसे कठोर योद्धा पर तो उग्रता ही सजती है, प्रचंड उग्रता। उसने कोमल रंगों को अपना संगी नहीं बनाया, ना ... उस जैसा शूर तो बस वीरता के ही एक रंग में सजीला लगता है।