भूख तो बहुत ज़ोर के लग रही थी पर इसके लिए उसके पास ना तो पैसा था और ना ही वक़्त। चाय की टपरी पर अपनी साइकल लगाते हुये उसने छोटू को "कट" के लिए आवाज़ दी।
आज फिर भूख को मिटाने के बजाये चाय मे डुबा कर मारना पड़ेगा।
चाय का पहला घूंट भरते ही भूख ने दम तोड़ना शुरू कर दिया, पैरों मे जान सी आने लगी । अभी दूसरा घूंट भरने का सोच ही रहा था कि अचानक उसे उसकी आवाज़ सुनाई दी। तेजी से पलटकर देखा - वही थी।
अक्तूबर की सुबह की धूप मे मरून और पीले रंग में बहुत ही सुंदर दिख रही थी।
वक्त थम गया, दुनिया मिट गयी। अब ना चाय थी, ना भूख थी, ना ज़िंदगी थी, ना मौत थी।
बस वो था और वो थी।
धीर धीरे चलते हुये वो पास से गुज़र गयी। ऐसा लगा सितारों के सागर में तैरते हुये ज़िंदगी निकल गयी। शायद किसी को तलाश रही थी। आगे जाकर ज़रा ठिठकी और फिर खड़ी हो गयी। अपने कंधे के बायीं और देखते वो एक तरफ को हल्की सी झुक गयी थी।
उसका इस तरह खड़े होना उसे माइकेल एंजेलो के डेविड की याद दिला गया। माइकेलएंजेलो ने गोलियथ को हराने के बाद खड़े डेविड को कुछ इसी अंदाज़ मे तराशा था। ये उसकी अपनी डेविड थी, यदि ज़िंदगी में आ जाए तो वो सारे गोलीयथों को हरा देगा।
उसका साथी..... अरे हाँ उसके साथ भी तो कोई था.... कहाँ गया?
वो रहा ... इस तरह अकेला छोड़ वहाँ शायद सिगरेट खरीद रहा है।
नालायक!
लटकी शर्ट, बिखरे बाल, आँखों के नीचे काले घेरे .... पक्का नशेड़ी लगता है। पर जो भी है किस्मत वाला है।
उसके घर के लोग उसके बारे में, उसके भविष्य के बारे में सोच रहे थे।
शायद वो नहीं जानती थी
पर वो जानता था।
एक दिन वो हिम्मत कर उसके घर भी गया था। उसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाने के लिए बात तो करनी ही थी।
वो घर पर नहीं थी, अक्सर नहीं होती थी।
उसने बात चलायी। लाख समझाने की कोशिश करी कि वो उसे बिलकुल अपना बना के रखेगा। पर कोई दलील काम ना आई, बात पैसे पर आकर अटक गयी।
वो एक ट्यूशन और पकड़ ले तो शायद कुछ बात बन जाये।
पर कॉलेज की पढ़ाई, और साथ में 3-3 ट्यूशन कैसे हो पाएगी? लेकिन अगर वो ज़िंदगी में आ जाती है तो ज़िंदगी संवर जाएगी। शायद कुछ टाइम अपने लिए भी निकाल पाये। शायद 4 ट्यूशन भी कर पाये।
अचानक हलचल सी हुयी, वो अपने साथी के साथ फिर चल दी थी। उसे इस तरह अपने से दूर होते देखकर इसने भी पक्का इरादा कर लिया। जैसे भी हो उसे हासिल करना ही है।
उसके घर वाले मुनासिब ही तो मांग रहे हैं। ये कोई 1983 नहीं है, 1993 है। पैसे की कीमत रह कहाँ गयी है। मांग बहुत ज़्यादा तो बिलकुल नहीं है।
चाय का आख़री घूंट भरते हुये उसे जाते हुये देखकर वो सोच रहा था पुरानी ही सही पर 21400 में यामाहा आरएक्स - 100 की बात ही कुछ और है।
आज फिर भूख को मिटाने के बजाये चाय मे डुबा कर मारना पड़ेगा।
चाय का पहला घूंट भरते ही भूख ने दम तोड़ना शुरू कर दिया, पैरों मे जान सी आने लगी । अभी दूसरा घूंट भरने का सोच ही रहा था कि अचानक उसे उसकी आवाज़ सुनाई दी। तेजी से पलटकर देखा - वही थी।
अक्तूबर की सुबह की धूप मे मरून और पीले रंग में बहुत ही सुंदर दिख रही थी।
वक्त थम गया, दुनिया मिट गयी। अब ना चाय थी, ना भूख थी, ना ज़िंदगी थी, ना मौत थी।
बस वो था और वो थी।
धीर धीरे चलते हुये वो पास से गुज़र गयी। ऐसा लगा सितारों के सागर में तैरते हुये ज़िंदगी निकल गयी। शायद किसी को तलाश रही थी। आगे जाकर ज़रा ठिठकी और फिर खड़ी हो गयी। अपने कंधे के बायीं और देखते वो एक तरफ को हल्की सी झुक गयी थी।
उसका इस तरह खड़े होना उसे माइकेल एंजेलो के डेविड की याद दिला गया। माइकेलएंजेलो ने गोलियथ को हराने के बाद खड़े डेविड को कुछ इसी अंदाज़ मे तराशा था। ये उसकी अपनी डेविड थी, यदि ज़िंदगी में आ जाए तो वो सारे गोलीयथों को हरा देगा।
उसका साथी..... अरे हाँ उसके साथ भी तो कोई था.... कहाँ गया?
वो रहा ... इस तरह अकेला छोड़ वहाँ शायद सिगरेट खरीद रहा है।
नालायक!
लटकी शर्ट, बिखरे बाल, आँखों के नीचे काले घेरे .... पक्का नशेड़ी लगता है। पर जो भी है किस्मत वाला है।
उसके घर के लोग उसके बारे में, उसके भविष्य के बारे में सोच रहे थे।
शायद वो नहीं जानती थी
पर वो जानता था।
एक दिन वो हिम्मत कर उसके घर भी गया था। उसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाने के लिए बात तो करनी ही थी।
वो घर पर नहीं थी, अक्सर नहीं होती थी।
उसने बात चलायी। लाख समझाने की कोशिश करी कि वो उसे बिलकुल अपना बना के रखेगा। पर कोई दलील काम ना आई, बात पैसे पर आकर अटक गयी।
वो एक ट्यूशन और पकड़ ले तो शायद कुछ बात बन जाये।
पर कॉलेज की पढ़ाई, और साथ में 3-3 ट्यूशन कैसे हो पाएगी? लेकिन अगर वो ज़िंदगी में आ जाती है तो ज़िंदगी संवर जाएगी। शायद कुछ टाइम अपने लिए भी निकाल पाये। शायद 4 ट्यूशन भी कर पाये।
अचानक हलचल सी हुयी, वो अपने साथी के साथ फिर चल दी थी। उसे इस तरह अपने से दूर होते देखकर इसने भी पक्का इरादा कर लिया। जैसे भी हो उसे हासिल करना ही है।
उसके घर वाले मुनासिब ही तो मांग रहे हैं। ये कोई 1983 नहीं है, 1993 है। पैसे की कीमत रह कहाँ गयी है। मांग बहुत ज़्यादा तो बिलकुल नहीं है।
चाय का आख़री घूंट भरते हुये उसे जाते हुये देखकर वो सोच रहा था पुरानी ही सही पर 21400 में यामाहा आरएक्स - 100 की बात ही कुछ और है।
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